भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार (26 अक्टूबर, 2024) को कहा कि धर्म भारतीय संस्कृति की सबसे मौलिक अवधारणा है, जो जीवन के सभी पहलुओं का मार्गदर्शन करती है. धर्म मार्ग, गंतव्य और लक्ष्य का प्रतिनिधित्व करता है और सभी क्षेत्रों में लागू होता है. यह एक व्यावहारिक आदर्श है. ये नैतिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण है. सनातन सहानुभूति, करुणा, सहिष्णुता, अहिंसा, गुणता, महानता और धार्मिकता का प्रतीक है और सभी यह एक शब्द में समाहित होते हैं, वह है समावेशिता.
उपराष्ट्रपति ने कर्नाटक के बेंगलुरु में शृंगेरी श्री शारदा पीठम की ओर से आयोजित ‘नमः शिवाय’ पारायण में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए “मंत्र कॉस्मापॉलिस” को एक दुर्लभ और अद्वितीय आयोजन बताया, जो मन, हृदय और आत्मा को गहराई से जोड़ता है. वह बोले कि वैदिक मंत्रोच्चारण मानवता की सबसे प्राचीन और निरंतर मौखिक परंपराओं में से एक है. हमारे पूर्वजों के गहन आध्यात्मिक ज्ञान का जीवित लिंक है. इन पवित्र मंत्रों की लय, स्वर और तरंगों से मानसिक शांति और पर्यावरणीय सामंजस्य की एक शक्तिशाली गूंज की उत्पत्ति होती है.
वैज्ञानिक उत्कृष्टता को दर्शाती है श्लोकों की संरचना
जगदीप धनखड़ के मुताबिक, वैदिक श्लोकों की संरचना और उच्चारण नियमों की जटिलता प्राचीन विद्वानों की वैज्ञानिक उत्कृष्टता को दर्शाती है. लिखित अभिलेखों के बिना संरक्षित यह परंपरा भारतीय संस्कृति की अद्भुत क्षमता का प्रमाण है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से ज्ञान का संचार करती है, जिसमें प्रत्येक स्वर को गणितीय सामंजस्य में निपुणता से व्यक्त किया जाता है.
प्रमुख धर्मों का जन्म स्थान रहा है भारत
उपराष्ट्रपति ने भारतीय संस्कृति में निहित विविधता में एकता की विशेषता पर जोर दिया, जो समय के साथ विभिन्न परंपराओं के मिश्रण के माध्यम से निर्मित हुई है. इस प्रगति ने विनम्रता और अहिंसा के मूल्यों को स्थापित किया है. भारत समग्रता में अद्वितीय है और एकता की भावना के साथ संपूर्ण मानवता का प्रतिनिधित्व करता है. भारतीय संस्कृति का दिव्य सार इसकी सार्वभौमिक करुणा में निहित है, जो “वसुधैव कुटुंबकम” के दर्शन में परिलक्षित होती है. भारत हिंदू धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म जैसे प्रमुख धर्मों का जन्म स्थान रहा है.
संस्कृति को नीचा दिखाने के प्रयासों पर क्या बोले?
पूर्व समय में हमारी संस्कृति को नीचा दिखाने के प्रयासों पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह राष्ट्र इसलिए जीवित है क्योंकि हमारी संस्कृति अजेय है. उन्होंने आदि शंकराचार्य की भूमिका को भारतीय संस्कृति को एकीकृत और मजबूत करने में महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि “हम आदि शंकराचार्य जी के प्रति कृतज्ञता के ऋणी हैं, जिन्होंने भारतीय आध्यात्मिकता और दर्शन की शाश्वत परंपराओं को पुनर्जीवित किया.”
मौजूद व्यक्ति को बताया संस्कृति का रक्षक
‘नमः शिवाय’ पारायण’ में उपस्थित सभी लोगों की ओर संकेत करते हुए धनखड़ ने कहा, “यहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति हमारी संस्कृति का रक्षक, राजदूत और सैनिक है.” उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि यह पारायण हमारी समय-सम्मानित परंपरा को गर्व के साथ भविष्य की पीढ़ियों को सौंपने का एक आयोजन है, जो भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संपदा को पवित्र रूप से प्रस्तुत करता है.
धर्म से संचालित समाज में असमानताओं के लिए कोई स्थान नहीं
उपराष्ट्रपति ने कहा कि धन की खोज लापरवाही या आत्म-केंद्रित नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर धन का संचय मानव कल्याण के साथ संतुलित हो तो यह अंतःकरण को शुद्ध करता है एवं प्रसन्नता प्रदान करता है. उन्होंने यह भी कहा कि व्यापारिक नैतिकता को आध्यात्मिक सिद्धांतों के साथ संरेखित होना चाहिए. यह ध्यान में रखते हुए कि धर्म सभी के प्रति निष्पक्षता, समानता और समान व्यवहार से जुड़ा है. उपराष्ट्रपति ने यह भी स्पष्ट किया कि धर्म से संचालित समाज में असमानताओं के लिए कोई स्थान नहीं है.
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