नई दिल्ली:
Gyanvapi Shiv Ling: दिल्ली उच्च न्यायालय ने वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में ‘शिव लिंग’ की उपस्थिति पर कथित आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट करने के आरोप में दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के प्रोफेसर डॉ. रतन लाल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने डॉ. रतन लाल की याचिका खारिज करते हुए कहा कि पोस्ट से समाज में नफरत और सांप्रदायिक तनाव बढ़ा और यह बड़ी संख्या में लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से किया गया था।
क्या था मामला?
डॉ. रतन लाल पर आरोप था कि उन्होंने मई 2022 में ज्ञानवापी मस्जिद के संबंध में एक आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट किया था, जो हिंदू समुदाय के विश्वासों को आहत करता था। डॉ. रतन लाल ने भारतीय दंड संहिता की धारा 153A और 295A के तहत दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की याचिका दायर की थी, लेकिन न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया।
न्यायालय का अहम फैसला
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने अपने आदेश में कहा कि प्रोफेसर या बुद्धिजीवी होने के बावजूद किसी व्यक्ति को इस तरह की टिप्पणियाँ करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ सीमाएं होती हैं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के कृत्य और टिप्पणियाँ ‘भगवान शिव/शिव लिंग’ के उपासकों के विश्वासों और रीति-रिवाजों के खिलाफ थीं और इससे समाज में नफरत और सांप्रदायिक तनाव बढ़ा।
प्रोफेसर की जिम्मेदारी
न्यायालय ने यह भी कहा कि एक इतिहासकार और शिक्षक के रूप में डॉ. रतन लाल पर समाज के प्रति बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि वह आम जनता के लिए एक आदर्श होते हैं। अदालत ने उन्हें और अधिक सचेत रहने की सलाह दी, क्योंकि उनके बयानों में दूसरों को प्रभावित करने की शक्ति होती है।
क्या अब होगा?
डॉ. रतन लाल को 20 मई, 2022 को गिरफ्तार किया गया था और अगले दिन उन्हें नियमित जमानत मिल गई थी। अदालत ने इस मामले में एफआईआर को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी और प्रोफेसर के कृत्य को आपराधिक कृत्य मानते हुए इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 153A और 295A के तहत योग्य ठहराया।